26 जनवरी 1950 की सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर भारत गणतंत्र बना था। गणतंत्र बनने के 6 मिनट बाद यानी 10 बजकर 24 मिनट पर भारत के पहले राष्ट्रपति डाo राजेंद्र प्रसाद ने पहले भाषण में कहा था:-
“हमारे लंबे और घटनापूर्ण इतिहास में यह सर्वप्रथम अवसर है, जब उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक और पश्चिम में काठियावाड़ तथा कच्छ से लेकर पूर्व में कोकनाडा और कामरूप तक यह विशाल देश सबका-सब इस संविधान और एक संघ राज्य के छत्रासीन हुआ है, जिसने इनके बत्तीस करोड़ नर-नारियों के कल्याण का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया है। अब इसका प्रशासन इसकी जनता द्वारा और इसकी जनता के हितों में चलेगा। इस देश के पास अनंत प्राकृतिक सम्पत्ति साधन हैं और अब इसको वह महान अवसर मिला है, जब वह अपनी विशाल जनसंख्या को सुखी और सम्पन्न बनाए तथा संसार में शांति स्थापना के लिए अपना अंशदान करे।”
“हमारे गणतंत्र का यह उद्देश्य है कि अपने नागरिकों को न्याय, स्वतन्त्रता और समानता प्राप्त कराए तथा इसके विशाल प्रदेशों में बसने वाले तथा भिन्न-भिन्न आचार-विचार वाले लोगों में भाईचारे की अभिवृद्धि हो। हम सब देशों के साथ मैत्रीभाव से रहना चाहते हैं। हमारा उद्देश्य है कि हम अपने देश में सर्वतोन्मुखी प्रगति करें। रोग, दारिद्रय और अज्ञानता के उन्मूलन का हमारा प्रोग्राम है। हम सब इस बात के लिए उत्सुक और चिंतित हैं कि हम पीड़ित भाइयों को, जिन्हें अनेक यातनाएं और कठिनाइयां सहनी पड़ी हैं और पड़ रही हैं, फिर से बसाएं और काम में लगाएं। जो जीवन की दौड़ में पीछे रह गए हैं, उनको दूसरों के स्तर पर लाने के लिए विशेष कदम उठाना आवश्यक और उचित है।“
भारत गणराज्य का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 से संविधान दिवस मनाया गया। संविधान सभा ने भारत के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया। गणतंत्र भारत में 26 जनवरी 1950 से संविधान अमल में लाया गया।
संविधान सभा में कुल 379 सदस्य थे, जिसमें 15 महिलाएं थीं। उन्होंने संविधान सभा के चर्चा का संचालन और नेतृत्व किया। अंबेडकर ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों के विषय में संबंधित अनुच्छेदों पर बहस के दौरान अपना नजरिया सबके सामने रखा। बतौर ड्राफ्टिंग कमेटी अध्यक्ष बाबा साहेब ने कई समितियों की ओर से आए सभी प्रस्तावों को अनुच्छेदों में सूत्रबद्ध किया। संविधान की सम्पादकीय जिम्मेदारी भी मुख्य तौर पर अंबेडकर ने ही उठाई। जिसे बाद में ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य रहे टी.टी. कृष्णमाचारी ने संविधान सभा के सामने रखा।
ड्राफ्टिंग कमेटी में कुल 7 सदस्य थे. संविधान को अंतिम रूप देने में डॉ. आंबेडकर की भूमिका को रेखांकित करते हुए भारतीय संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के एक सदस्य टी.टी. कृष्णमाचारी ने नवम्बर 1948 में संविधान सभा के सामने कहा था: ‘सम्भवत: सदन इस बात से अवगत है कि आपने ( ड्राफ्टिंग कमेटी में) में जिन सात सदस्यों को नामांकित किया है, उनमें एक ने सदन से इस्तीफा दे दिया है और उनकी जगह अन्य सदस्य आ चुके हैं. एक सदस्य की इसी बीच मृत्यु हो चुकी है और उनकी जगह कोई नए सदस्य नहीं आए हैं. एक सदस्य अमेरिका में थे और उनका स्थान भरा नहीं गया. एक अन्य व्यक्ति सरकारी मामलों में उलझे हुए थे और वह अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रहे थे. एक-दो व्यक्ति दिल्ली से बहुत दूर थे और सम्भवत: स्वास्थ्य की वजहों से कमेटी की कार्यवाहियों में हिस्सा नहीं ले पाए. सो कुल मिलाकर यही हुआ है कि इस संविधान को लिखने का भार डॉ. आंबेडकर के ऊपर ही आ पड़ा है. मुझे इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि हम सब को उनका आभारी होना चाहिए कि उन्होंने इस जिम्मेदारी को इतने सराहनीय ढंग से अंजाम दिया है.’ (संविधान सभा की बहस, खंड- 7, पृष्ठ- 231) (source : https://hindi.theprint.in/opinion/why-dr-ambedkar-is-called-the-creator-of-indian-constitution/100030/)
भारत के संविधान निर्माण के लिए मूलतः कांग्रेस पार्टी जिम्मेदार है। नेहरू, पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, मौलाना आजाद इसके मूल स्तम्भ हैं जिसमें भी नेहरू का योगदान सबसे ऊपर है। कांग्रेस ने इसे सर्वग्राह्य बनाने के लिए बहुत से योग्य व्यक्तियों को, जो अलग-अलग दलों में थे, उन्हें स्थान सम्मान दिया और महत्त्वपूर्ण प्रभार कार्य सौंपे।